January 14, 2011

कविता

ज़िन्दगी की आहट को तुम्हारी ज़रूरत थी
तुम ना मिले सब कुछ मिला
मिलने के बाद बिचडने का गम ने किया ये आलम ||

हमारा जो भी था छोड़ने को तयार हुए
तो पता चला
तुम लौटथे ही – सब कुछ जो भी था मेरा
कबका खो गया और में फिर से बन गए तेरी ||

अब तेरी रहकर राह न मिले तो
तुम लगा लेना गले से और कह देना ज़माने से की
एक ही तो ‘कविता’ है जो मेरी थी
अब बर्पूर मेरी होकर रहेगी ||

No comments: